Atal Bihari Vajpayee Poem: "मौत से बेखबर, जिन्दगी का सफर'', वाचा अटलजींच्या पाच कविता
By ऑनलाइन लोकमत | Updated: August 16, 2018 14:35 IST2018-08-16T13:19:55+5:302018-08-16T14:35:56+5:30
भारतरत्न आणि माजी पंतप्रधान अटल बिहारी वाजपेयी यांची तब्येत अचानक खालावली आहे.

Atal Bihari Vajpayee Poem: "मौत से बेखबर, जिन्दगी का सफर'', वाचा अटलजींच्या पाच कविता
नवी दिल्ली- भारतरत्न आणि माजी पंतप्रधान अटल बिहारी वाजपेयी यांची तब्येत अचानक खालावली आहे. प्रकृती अस्वास्थ्यामुळे अनेक दिवसांपासून ते एम्स रुग्णालयात उपचार घेत आहेत. मागच्या 36 तासांपासून त्यांची प्रकृती चिंताजनक आहे. पंतप्रधान नरेंद्र मोदी, उपराष्ट्रपती व्यंकय्या नायडूंसमवेत अनेक मोठ्या नेत्यांनी एम्समध्ये जाऊन वाजपेयींच्या तब्येचीही माहिती घेतली आहे.
विशेष म्हणजे देशभरातून अटल बिहारी वाजपेयी यांची प्रकृती सुधारावी, यासाठी प्रार्थना केली जातेय. अटल बिहारी वाजपेयी हे एक यशस्वी नेत्याबरोबरच कवी आहेत. ते ब-याचदा स्वतःच्या भाषणांमधून उपस्थितांना कविता ऐकवत असत. अटल बिहारी वाजपेयी यांची देशातले ज्येष्ठ नेते आणि उदारमतवादी व्यक्ती अशी प्रतिमा असून, ते जनतेतही फार लोकप्रिय आहेत. तसेच कवी म्हणून ते लोकांच्या पसंतीस उतरलेले आहेत. साहित्यिक म्हणूनही ते लोकांना परिचित आहेत. त्यांच्या कविताही अनेकांना आवडायच्या. त्यांचा कविता संग्रह 'मेरी इक्वावन कविता' चाहत्यांमध्ये प्रचंड लोकप्रिय आहे. त्यांच्या काही निवडक कविता पाहूयात.
कदम मिलाकर चलना होगा
बाधाएं आती हैं आएं
घिरें प्रलय की घोर घटाएं,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों में हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
हास्य-रूदन में, तूफानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
कुछ कांटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा.
क़दम मिलाकर चलना होगा.
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दो अनुभूतियां
पहली अनुभूति
बेनकाब चेहरे हैं, दाग बड़े गहरे हैं
टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूं
गीत नहीं गाता हूं
लगी कुछ ऐसी नज़र बिखरा शीशे सा शहर
अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूं
गीत नहीं गाता हूं
पीठ मे छुरी सा चांद, राहू गया रेखा फांद
मुक्ति के क्षणों में बार बार बंध जाता हूं
गीत नहीं गाता हूं
दूसरी अनुभूति
गीत नया गाता हूं
टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर
पत्थर की छाती मे उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात कोयल की कुहुक रात
प्राची में अरुणिम की रेख देख पता हूं
गीत नया गाता हूं
टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी
अन्तर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा,
काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं
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दूध में दरार पड़ गई
खून क्यों सफेद हो गया?
भेद में अभेद खो गया.
बंट गये शहीद, गीत कट गए,
कलेजे में कटार दड़ गई.
दूध में दरार पड़ गई.
खेतों में बारूदी गंध,
टूट गये नानक के छंद
सतलुज सहम उठी, व्यथित सी बितस्ता है.
वसंत से बहार झड़ गई
दूध में दरार पड़ गई.
अपनी ही छाया से बैर,
गले लगने लगे हैं ग़ैर,
ख़ुदकुशी का रास्ता, तुम्हें वतन का वास्ता.
बात बनाएं, बिगड़ गई.
दूध में दरार पड़ गई.
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मौत से ठन गई
ठन गई
मौत से ठन गई.
जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई
मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ,
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?
तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आज़मा
मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र,
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर
बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं
प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला
हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए
आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,
नाव भँवरों की बाँहों में मेहमान है
पार पाने का क़ायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफ़ाँ का, तेवरी तन गई
मौत से ठन गई
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एक बरस बीत गया
झुलासाता जेठ मास
शरद चांदनी उदास
सिसकी भरते सावन का
अंतर्घट रीत गया
एक बरस बीत गया
सीकचों मे सिमटा जग
किंतु विकल प्राण विहग
धरती से अम्बर तक
गूंज मुक्ति गीत गया
एक बरस बीत गया
पथ निहारते नयन
गिनते दिन पल छिन
लौट कभी आएगा
मन का जो मीत गया
एक बरस बीत गया