मिर्झा गालिब यांच्या काही लोकप्रिय गजल!

By ऑनलाइन लोकमत | Published: December 27, 2018 01:23 PM2018-12-27T13:23:14+5:302018-12-27T13:25:25+5:30

उर्दू गजल विश्वातील चमकता तारा असं ज्यांना म्हटलं जातं ते मिर्झा असदुल्लाह बेग खान म्हणजे मिर्झा गालिब यांची आज २२१ वी जयंती.

Mirza Ghalib 221th birth Anniversary: Read most popular Gazals by Ghalib | मिर्झा गालिब यांच्या काही लोकप्रिय गजल!

मिर्झा गालिब यांच्या काही लोकप्रिय गजल!

उर्दू गजल विश्वातील चमकता तारा असं ज्यांना म्हटलं जातं ते मिर्झा असदुल्लाह बेग खान म्हणजे मिर्जा गालिब यांची आज 221वी जयंती. या माणसाला कोणत्याही परिचयाची गरज नाही. कारण त्याची ओळख त्याचे शब्द आहेत. २७ डिसेंबर १७९७ मध्ये गालिब यांचा जन्म झाला होता. आज ते आपल्यात नसले तरी त्यांचे शब्द आजही अनेकांच्या मनात घर करुन आहेत. त्यांच्या जयंतीनिमित्त त्यांच्या काही खास गजल आम्ही तुमच्यासाठी घेऊन आलो आहोत....

आ कि मिरी जान को क़रार नहीं है 
ताक़त-ए-बेदाद-ए-इंतिज़ार नहीं है 

देते हैं जन्नत हयात-ए-दहर के बदले 
नश्शा ब-अंदाज़ा-ए-ख़ुमार नहीं है 

गिर्या निकाले है तेरी बज़्म से मुझ को 
हाए कि रोने पे इख़्तियार नहीं है 

हम से अबस है गुमान-ए-रंजिश-ए-ख़ातिर 
ख़ाक में उश्शाक़ की ग़ुबार नहीं है 

दिल से उठा लुत्फ़-ए-जल्वा-हा-ए-मआनी 
ग़ैर-ए-गुल आईना-ए-बहार नहीं है 

क़त्ल का मेरे किया है अहद तो बारे 
वाए अगर अहद उस्तुवार नहीं है 

तू ने क़सम मय-कशी की खाई है 'ग़ालिब' 
तेरी क़सम का कुछ ए'तिबार नहीं है 
.............

आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे 
ऐसा कहाँ से लाऊँ कि तुझ सा कहें जिसे 

हसरत ने ला रखा तिरी बज़्म-ए-ख़याल में 
गुल-दस्ता-ए-निगाह सुवैदा कहें जिसे 

फूँका है किस ने गोश-ए-मोहब्बत में ऐ ख़ुदा 
अफ़्सून-ए-इंतिज़ार तमन्ना कहें जिसे 

सर पर हुजूम-ए-दर्द-ए-ग़रीबी से डालिए 
वो एक मुश्त-ए-ख़ाक कि सहरा कहें जिसे 

है चश्म-ए-तर में हसरत-ए-दीदार से निहाँ 
शौक़-ए-इनाँ गुसेख़्ता दरिया कहें जिसे 

दरकार है शगुफ़्तन-ए-गुल-हा-ए-ऐश को 
सुब्ह-ए-बहार पुम्बा-ए-मीना कहें जिसे 

'ग़ालिब' बुरा न मान जो वाइज़ बुरा कहे 
ऐसा भी कोई है कि सब अच्छा कहें जिसे 

या रब हमें तो ख़्वाब में भी मत दिखाइयो 
ये महशर-ए-ख़याल कि दुनिया कहें जिसे
..............

फिर इस अंदाज़ से बहार आई 
कि हुए मेहर ओ मह तमाशाई 

देखो ऐ साकिनान-ए-ख़ित्ता-ए-ख़ाक 
इस को कहते हैं आलम-आराई 

कि ज़मीं हो गई है सर-ता-सर 
रू-कश-ए-सतह-ए-चर्ख़-ए-मीनाई 

सब्ज़ा को जब कहीं जगह न मिली 
बन गया रू-ए-आब पर काई 

सब्ज़ा ओ गुल के देखने के लिए 
चश्म-ए-नर्गिस को दी है बीनाई 

है हवा में शराब की तासीर 
बादा-नोशी है बादा-पैमाई 
...............
मेहरबाँ हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त 
मैं गया वक़्त नहीं हूँ कि फिर आ भी न सकूँ 

ज़ोफ़ में ताना-ए-अग़्यार का शिकवा क्या है 
बात कुछ सर तो नहीं है कि उठा भी न सकूँ 

ज़हर मिलता ही नहीं मुझ को सितमगर वर्ना 
क्या क़सम है तिरे मिलने की कि खा भी न सकूँ 

.........

काही निवडक लोकप्रिय शेर

निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन
बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकले

दिल-ए-नादां, तुझे हुआ क्या है
आखिर इस दर्द की दवा क्या है 

मेहरबां होके बुलाओ मुझे, चाहो जिस वक्त
मैं गया वक्त नहीं हूं, कि फिर आ भी न सकूं

या रब, न वह समझे हैं, न समझेंगे मेरी बात
दे और दिल उनको, जो न दे मुझको जबां और

कैदे-हयात बंदे-.गम, अस्ल में दोनों एक हैं
मौत से पहले आदमी, .गम से निजात पाए क्यों

मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले

रंज से खूंगर हुआ इंसां तो मिट जाता है गम
मुश्किलें मुझपे पड़ीं इतनी कि आसां हो गईं

Web Title: Mirza Ghalib 221th birth Anniversary: Read most popular Gazals by Ghalib

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